(DSW) Desk
अनुशासन समिति
अनुशासन ही उद्देष्य और उपलब्धि के बीच का सेतु है।
– जिम रॉन
नियमों की अनुगामिता (पीछे चलना) से जीवन में व्यवस्था आती है और व्यवस्था ही सफलता की कुंजी है। व्यक्ति अनुशासन के माध्यम से समय के महत्व को समझता है। अनुशासन के द्वारा व्यक्तिगत स्वच्छंदता नियंत्रित होती है और व्यक्ति का सर्वांगीण उन्नयन होता है।अनुशासन सामाजिकता को बढ़ावा देता है और व्यक्ति को समाज से जोड़ता है। सूक्ष्मता से विष्लेषण किया जाए तो अनुशासन का संबंध जीवों के नैसर्गिक स्वभाव से है।छात्रों को अनुशासन-प्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि वे ही राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं। इस प्रक्रिया में शिक्षक अहम भूमिका निभातें हैं। गुरूजनों के अनुशासन में रहकर ही छात्र समुचित रीति से विद्या ग्रहण करते हैं और अपने चरित्र को उन्नत बनाते हैं। गुरूजनों से शिक्षा प्राप्त कर वे राष्ट्र के ऐसे आदर्श नागरिक बनते है जिनकी प्रशंसा हर कोई करता है। अनुशासन छात्र-जीवन की आत्मा है। अनुशासनहीन छात्र न तो अपने देश का सभ्य नागरिक बन सकता है और न अपने व्यक्तिगत जीवन में ही सफल हो सकता है। यों तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन की परम आवश्यकता है, परंतु सफल छात्र जीवन के लिए तो यह एकमात्र कुंजी है।छात्रों को समझना चाहिए कि- प्राथमिकताओं को समझना ही नेतृत्व है और उसका नियंत्रित प्रबन्धन ही अनुशासन है।अनुशासन हमें बहुत सारे शानदार अवसर देता है, आगे बढ़ने का सही तरीका, जीवन में नई चीजें सीखने, कम समय के अन्दर अधिक अनुभव करने, आदि। जबकि, अनुशासन की कमी से बहुत भ्रम और विकार पैदा होते हैं। अनुशासनहीनता के कारण जीवन में शांति और प्रगति नहीं होती है, इसके बजाए अनेक समस्याएॅ पैदा हो जाती है। संक्षेप में हम कह सकते है कि अनुशासन वह सीढी है जिसके माध्यम से व्यक्ति जीवन में सफलता की ऊँचाई की ओर चढ़ सकता है। यह छात्र को अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है और उसे अपने लक्ष्य से भटकनें नहीं देता है।अनुशासन व्यक्ति को अपने मन में उन सभी सकारात्मक नियमों और विनियमों का प्रशिक्षण देकर पूर्णता लाता है, जो उसे समाज में एक सम्मानित व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करना है। यही कारण है कि आज के इस आधुनिक युग में भी अनुशासन को इतना महत्व दिया जाता है। उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। Elevate yourself through your own efforts, and not degrade yourself; For, the mind can be the friend and also the enemy of the self. स्वयं अपना उद्धार करें अपना पतन न करें। क्योंकि आप ही अपने मित्र हैं, और आप ही अपने शत्रु हैं।। अनुशासन के क्षेत्र में हमारे महाविद्यालय की शहर ही नहीं अपितु प्रदेश में एक अलग छवि है। इसी कारण महाविद्यालय में 70 प्रतिशत छात्रायें, छात्रों के साथ अध्ययन करतीं है। सम्प्रति जो सामाजिक स्थिति है इस माहौल में अभिभावक अपने बच्चों को इस महाविद्यालय में प्रवेश दिलाकर महफूज हो जाता है। यही हमारी उपलब्धि है। इस कार्य को सम्पन्न करने हेतु महाविद्यालय प्रांगण में 36 सी0सी0टी0वी0 कैमरों द्वारा सम्पूर्ण प्रांगण अनुशासक मंडल का गठन किया जाता है। जो लगातार सम्पूर्ण प्रांगण का परिभ्रमण कर अनुशासन व्यवस्था को चाक-चौबन्द रखता है। महाविद्यालय प्रांगण में अनुशासन बनाये रखने में सभी छात्र-छात्राओं से सहयोग अपेक्षित है। न अत्याचार दूसरों पर करें और न सहें। किसी भी परिस्थिति में हम आपके साथ हैं।

Dr. Satish Gulia
Chief Proctor
Assistant Professor